Parliament Winter Session 2024: संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान हो रहे हंगामे के बीच कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि लोकतंत्र हमेशा दो पहियों पर चलता है. उन्होंने कहा, “एक पहिया है सत्तापक्ष और दूसरा विपक्ष. दोनों की जरूरत होती है. सांसदों के विचारों को तो देश तब ही सुनता है जब हाउस चलता है.”
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर खरगे ने कहा, “16 मई 1952 को सभापति के रूप में राज्य सभा में पहले सभापति डॉ राधाकृष्णन जी ने सांसदों से कहा था कि मैं किसी भी पार्टी से नहीं हूं और इसका मतलब है कि मैं सदन में हर पार्टी से हूं. यह निष्पक्षता की परंपरा आपके कार्यकाल (सभापति जगदीप धनखड़) में पूरी तरह खंडित हो गयी. आज विपक्ष की आवाज़ का गला घोटना अब राज्य सभा में संसदीय प्रक्रिया का नियम बन गया है.”
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने आरोप लगाते हुए कहा, संसद की मर्यादाओं और नैतिकता आधारित परंपराओं का हनन अब राज्य सभा में दिनचर्या बन गई है. प्रजातंत्र को कुचलने और सच को पराजित करने की कोशिश लगातार जारी है. हम संविधान के सिपाही और रक्षक के तौर पर हमारा निश्चय और ज्यादा दृढ़ हो जाता है. हम न झुकेंगे, न दबेंगे, न रुकेंगे और संविधान, संसदीय मर्यादाओं और प्रजातंत्र की रक्षा के लिए हर कुर्बानी के लिए सदैव तत्पर रहेंगे.”
खरगे ने देश के सामने रखे प्रमुख बिंदु
1. संसद में सदस्यों को अपनी बात कहने का पूरा अधिकार है, लेकिन सभापति महोदय विपक्ष को लगातार टोकते हैं, उन्हें अपनी बात पूरी करने का मौका नहीं देते हैं. विपक्ष से बिना वजह authentication की मांग करते हैं, जबकि सत्ता पक्ष के सदस्यों को, मंत्रियों को और प्रधानमंत्री को कुछ भी कहने देते हैं. वो कोई भी झूठ सदन में कह दें, कोई भी फेक न्यूज फैला दें, उन्हें कभी नहीं रोकते, लेकिन विपक्ष के सदस्यों को मीडिया की रिपोर्ट को भी प्रमाणित करने को कहते हैं और ऐसा न करने पर उन पर कार्यवाही करने की धमकी देते हैं.
2. सभापति ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए कई बार सदस्यों को थोक मे सस्पेंड किया है. कुछ सदस्यों का निलंबन सत्र पूरा होने पर भी जारी रखा था, जो नियम और परंपराओं के ख़िलाफ़ था.
3. सभापति ने कई बार सदन के बाहर भी विपक्षी नेताओं की आलोचना की है. वो अक्सर बीजेपी की दलीलें दोहराते हैं और विपक्ष पर राजनैतिक टीका टिप्पणी करते हैं.वो रोज़ ही सीनियर मेंबर्स को स्कूली बच्चों की तरह पाठ पढ़ाते है, उनके व्यवहार में संसदीय गरिमा और दूसरों का सम्मान करने का भाव नहीं दिखता है.