बीते सप्ताह मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ सेवानिवृत्त हो चुके. सोमवार से यह पद जस्टिस संजीव खन्ना संभालेंगे. न्यायपालिका के सबसे ताकतवर ओहदे पर बैठे शख्स रिटायरमेंट के बाद वकालत बिल्कुल नहीं कर सकते. सुप्रीम कोर्ट से रिटायर जजों समेत मुख्य न्यायधीश को भी देश की किसी कोर्ट में वकालत की इजाजत नहीं है. संविधान का अनुच्छेद 124(7) खुद इसपर रोक लगाता है.
सर्वोच्च न्यायालय से सेवानिवृति के बाद जजों की प्रैक्टिस प्रतिबंधित करने के पीछे कई कारण हैं.
संविधान का अनुच्छेद 124 पक्का करता है कि रिटायर हुए जजों के फैसले उनके न्यायाधीश के कार्यकाल के दौरान लिए गए फैसलों से प्रभावित न हों. इससे कोर्ट की निष्पक्षता बनी रहती है.
साथ ही, अगर एक पूर्व चीफ जस्टिस या जज, अदालत में वकालत करें तो उनकी बातों या सोच का असर बाकी जजों पर हो सकता है. इससे बचना भी एक मकसद रहा.
सुप्रीम कोर्ट में रह चुके जजों के पद की संवैधानिक गरिमा होती है. रिटायरमेंट के बाद सीधे तौर पर अदालतों में प्रैक्टिस से इसपर असर हो सकता है. यही वजह है कि संविधान के लागू होने के साथ ही ऐसा नियम बना दिया गया.
चूंकि चीफ जस्टिस के पास संवेदनशील जानकारियां होती हैं, जिनका गलत इस्तेमाल हो सकता है इसलिए भी रिटायर होने के बाद वे प्रैक्टिस नहीं कर सकते.
तब क्या-क्या हैं विकल्प
वकालत तो नहीं, लेकिन काम के बहुतेरे रास्ते सर्वोच्च न्यायालय के जजों के पास होते हैं. मसलन, वे कई बार विवादों में मध्यस्थ या समझौता करने वाले की भूमिका निभा सकते हैं क्योंकि उनके पास कानूनी मामलों की अच्छी समझ होती है. आर्बिट्रेशन एंड कॉन्सिलिएशन एक्ट, 1996 उन्हें इसकी इजाजत देता है.
इसके अलावा रिटायर्ड जज कई बार अलग-अलग आयोगों और ट्रिब्यूनल, जैसे भारतीय विधि आयोग, मानवाधिकार आयोग या ग्रीन ट्रिब्यूनल के लिए चेयरपर्सन या सदस्य की तरह भी सेवा दे सकते हैं.
बहुत से रिटायर्ड जज कानून की पढ़ाई के क्षेत्र में काम करने लगते हैं. वे लॉ कॉलेजों में पढ़ाते या कानूनी मुद्दों पर पेपर लिखते हैं. इससे उनका तजुर्बा उनके पेशे के बाकी लोगों तक पहुंच पाता है.
कुछ रिटायर्ड जजों को राज्यपाल जैसे संवैधानिक पदों पर भी नियुक्त किया जाता है. जैसे जस्टिस एसएफ अली रिटायरमेंट के बाद झारखंड के राज्यपाल बनाए गए थे, या पी. सत्यनारायण राजू आंध्रप्रदेश के गवर्नर नियुक्त हुए थे.
सरकारी पद पर काफी हुआ विवाद
रिटायरमेंट के बाद सुप्रीम कोर्ट के जजों को संवैधानिक पद मिलने पर अक्सर विवाद होता रहा. एक तबका मानता है कि जजों की आयोगों और ट्रिब्यूनलों में नियुक्तियां एक से सरकारी रिवॉर्ड है, जो कार्यकाल के दौरान लिए उन फैसलों के लिए मिलती है, जिनसे सरकार को मदद मिली हो. मिसाल के तौर पर जब पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई को रिटायरमेंट के तुरंत बाद राज्यसभा के लिए चुना गया, तो इसे लेकर काफी बहस हुई थी. विरोधियों का तर्क था कि ऐसी नियुक्तियों से आम लोगों के मन में अदालत की छवि कमजोर हो सकती है. वहीं सरकारी दलील है कि उनके अनुभव और नॉलेज से बड़ी संस्था समेत आम लोगों तक फायदा पहुंचता है.
किस तरह की सुविधाएं मिलती हैं
न्यायपालिका लोकतंत्र का बेहद अहम हिस्सा है, यही वजह है कि सेवानिवृत्त सीजेआई और सुप्रीम कोर्ट के जजों को कई तरह की सुविधाएं मिलती रहीं. जैसे उनके आवास पर 24 घंटे का सुरक्षा कवर और एक पर्सनल सिक्योरिटी गार्ड पांच साल के लिए मिलेगा. रिटायरमेंट की तारीख से छह महीने के लिए दिल्ली में एक आवास भी दिया जाएगा, जो कि पुराने आधिकारिक घर से अलग होगा. ये टाइप-VII आवास होगा, जो आमतौर पर उन सांसदों को दिया जाता है, जो केंद्रीय मंत्री रह चुके हों.
उन्हें पूरे जीवन के लिए घरेलू सहायक और ड्राइवर मिलेगा. साथ ही हवाई सफर के दौरान उनके लिए हवाई अड्डों पर सेरेमोनियल लाउंज होगा. ये एक खास सुविधा है, जहां अपनी फ्लाइट का इंतजार करते हुए वे आम लोगों से अलग लाउंज में आराम कर सकते हैं. सुरक्षा वजहों से भी प्राइवेट वेटिंग एरिया की सुविधा दी जा रही है. फ्री टेलीफोन जैसी कई छुटपुट चीजें भी इसमें शामिल हैं.