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Tuesday, December 24, 2024

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धृतराष्ट्र का छल, रोमन साम्राज्य का बल और मंगोल कुल… मिथकों से मॉडर्न एरा तक बदलता रहा भेड़िये का रूप



वो लड़का याद है? वही कहानी वाला लड़का… जो किसी टीले से शोर मचाता था और गांव वालों को बुलाता था. चिल्लाते हुए कहता था. अरे! बचाओ-बचाओ… भेड़िया आया, भेड़िया आया. गांव वाले आते तो वह जोर-जोर से हंसने लगता था, कहता था, मैं तो तुम सबको बुद्धू बना रहा था. ऐसा कई बार हुआ. वह चिल्लाया, गांव वाले आए लेकिन लड़के ने सबका मजाक उड़ाया. फिर, धीरे-धीरे गांव वालों ने उसकी आवाज पर कान देना बंद कर दिया. फिर एक दिन भेड़िया सचमुच आ गया. लड़का चिल्लाया, पुकारा, गांव वालों से बचाने की मिन्नतें करता रहा, लेकिन गांव वाले बचाने नहीं गए. भेड़िये ने लड़के को अपना शिकार बना लिया.

दादी-नानी की कहानियों में शामिल रही भेड़िया की ये कहानी छोटे बच्चों को यह समझाने के लिए सुनाई जाती रही है कि ‘झूठ नहीं बोलना चाहिए, नहीं तो लोग भरोसा करना बंद कर देते हैं.’ नैतिक शिक्षा वाली इस कहानी में वो लड़का विलेन है, जो विक्टिम बनता है और भेड़िया उस झूठ का प्रतीक है जिसे बार-बार बोलकर सच बनाने की कोशिश की गई है. कहानी की व्याख्या आप चाहे जितनी गहराई से कर लें, लेकिन सच यह है कि भेड़िया आ गया है, वह लोगों को घायल कर रहा है, बच्चों को उठा ले जा रहा है, उनकी जान ले रहा है और यह सब बीते 20 दिनों से उत्तर प्रदेश के एक जिले बहराइच में घट रहा है.

बहराइच में लोगों की बस्ती के बीच भेड़ियों के इस आतंक की असल वजह के कई पहलू हैं, लेकिन सबसे जरूरी पहलू ये है कि हमने उनसे उनका घर, उनका जंगल छीना है. बीते कई दशकों में हम मानव सभ्यता की वो पीढ़ी बन चुके हैं जो विज्ञान और सनातन दोनों को जानती है, पर मानती किसी एक को भी नहीं है. विज्ञान की बायोडायवर्सिटी वाली बात अगर समझ से परे थी तो बड़े-बुजुर्गों की उन्हीं पुरानी बातों को ध्यान में रख लेना चाहिए था, जिनमें जंगल के साथ-साथ शेर, गाय, बैल, मछली, बकरी, घोड़ा, सांप, कुत्ता, भेड़ और यहां तक की भेड़िया भी जरूरी बताया गया है. अगर ये बात याद रखी गई होती और इस पर अमल होता तो आज ऐसी घटनाएं सामने नहीं आतीं जिनसे बहराइच जूझ रहा है.


जिस तरह सनातनी परंपरा और हिंदू पौराणिक ग्रंथों में कई पशु और जीव-जंतु सीधे तौर पर ईश्वरीय तत्व से जुड़े हैं भेड़िया भी इनसे परे नहीं है. कई हिंदू पौराणिक मिथकों में भेड़िया प्रतीक रूप में शामिल है. हालांकि उसका स्वरूप नकारात्मक है. वह निगेटिव एनर्जी और एलिमेंट रखता है, जो कि सकारात्मकता के साथ संतुलन बनाने के लिए जरूरी हो जाता है. पौराणिक मिथकों में भेड़िया बदला, धोखा और क्रूरता का प्रतीक है. उसकी जैसी टेंडेंसी है वह कई बार युद्ध जैसी परिस्थितियों में साम-दाम, दंड-भेद वाली नीति का चेहरा बनती है.  

भेड़िये का जिक्र बुराई और धोखे के प्रतीक के रूप में भी किया जाता है. महाभारत और अन्य धार्मिक कथाओं में शत्रुओं या धोखेबाजों की तुलना भेड़िये जैसे चालाक और खतरनाक जीवों से की जाती है. लोककथाओं में भी भेड़िये का चरित्र ऐसा ही है. उसे उन जीवों में गिना जाता है जो इंसान और अन्य जीवों के लिए खतरा हो सकते हैं. यहां ये याद रखना जरूरी है कि शेर भी हिंसक है, मांसाहारी है, लेकिन शेर वीरता, अदम्य साहस का प्रतीक है, वह पॉजिटिव एनर्जी है, लेकिन भेड़िया हिंसक और मांसाहारी होने के साथ साहसी है भी तो उसका साहस स्वार्थ और लालच से जोड़कर देखा जाता है.

महाभारत की ही बात करें तो जहां शकुनि की बु्द्धि की तुलना लोमड़ी से की जाती है तो वहीं हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र की टेंडेंसी को भेड़िया सरीखा बताया जाता है. धृतराष्ट्र पुत्र मोह में अंधा है और दुर्योधन की हर उस गलत बात को अपना मौन समर्थन दिए रहता है जिसके जरिए किसी भी तरीके से हस्तिनापुर का मुकुट दुर्योधन या फिर उसके पाले में आ जाए. फिर चाहे वह लाक्षागृह की घटना हो, जुआ खेलने की घटना हो, द्रौपदी का वस्त्रहरण हो या फिर महाभारत का युद्ध. धृतराष्ट्र हर एक जगह पर खुद को बेहद कातर और दीन-हीन बनाए रखता है और मौका पड़ते ही हमला भी कर देता है.

उसका ये भेड़िया स्वभाव महाभारत के अंत भाग में खुलकर सामने आ जाता है. जब युद्ध जीतकर पांडव हस्तिनापुर पहुंचते हैं तो धृतराष्ट्र भीम को अपने पास बुलाता है और गले लगने के लिए कहता है. धृतराष्ट्र की योजना थी कि वह भीम को अपनी भुजाओं के बीच जकड़ कर मसल देगा. धृतराष्ट्र अंधे जरूर थे, लेकिन उनकी भुजाओं में पत्थर को भी मसल कर चूर कर देने वाली शक्ति थी. भीम जैसे ही आगे बढ़ते हैं, श्रीकृष्ण धृतराष्ट्र की योजना समझकर भीम को रोक देते हैं और पत्थर की आदमकद मूर्ति धृतराष्ट्र की ओर बढ़ा देते हैं. धृतराष्ट्र मूर्ति को ही भीम समझकर गले लगाता है और एक झटके में उसे दबाकर फोड़ डालता है. इस तरह भीम की जान बच जाती है. धृतराष्ट्र का ये छल महाभारत की महत्वपूर्ण घटना बन जाता है, जिसे पर कवियों और लेखकों ने बाद में खूब लिखा है.


कहते हैं कि ‘छल का धृतराष्ट्र भेड़िया बनकर गले लगाने आगे बढ़े तो सतर्क रहना चाहिए.’

जब बात सतर्कता की आती है तो जीवन में इसका पाठ पढ़ाने के लिए भी ‘भेड़िया’ बहुत जाना-माना उदाहरण रहा है. आचार्य विष्णु शर्मा की रचना पंचतंत्र में तो भेड़िया कई कहानियों में मुख्य किरदारों की तरह सामने आता है. इसकी  कई कहानियों में विलेन होने के बावजूद भेड़िया ही लीड कैरेक्टर बनकर उभरता है.

पंचतंत्र के एक अध्याय में कहानी कुछ यूं है कि जंगल के राजा शेर की एक ऊंट से दोस्ती हो जाती है. उस शेर के पीछे-पीछे एक भेड़िया भी लगा रहता था तो वहीं एक सियार भी बचे मांस पर मुंह मारने के लिए उनकी चापलूसी करता था. एक समय ऐसा हुआ कि भयंकर बारिश के कारण कई दिनों तक शिकार के लिए कुछ नहीं मिला. सियार बोला- क्या बदकिस्मती है, हमारे पास इतना तगड़ा ऊंट है जिसे हम कई दिनों तक खा सकते हैं, लेकिन महाराज से कौन कहे, वो तो उनका दोस्त है. ये सुनकर भेड़िये की बुद्धि चलती है और वो सियार को अपने नाटक में शामिल कर लेता है.

अगले दिन सियार बहुत रोनी सूरत बनाए हुए शेर के पास जाकर कहता है, ‘महाराज, आपने इतने दिन से कुछ नहीं खाया, आपको भूखा देखा नहीं जाता. इसलिए आप मेरा मांस खाकर अपनी भूख मिटा लीजिए.’ इस पर भेड़िया कहता है- चल हट, तेरा मांस तो महाराज के दांत में फंस कर रह जाएगा. महाराज आप मुझे मारकर खा लीजिए…’ ये सुनकर, ऊंट पर एक नैतिक दबाव पड़ा, उसने भी अपनी दोस्ती साबित करने के लिए कह दिया, ‘महाराज आप मेरा मांस खा लीजिए, मैं तो इन दोनों से काफी बड़ा और तगड़ा भी हूं. ये सुनते ही भेड़िये ने लाचार बनते हुए कहा कि, ये सही है महाराज, आपको इसकी बात माननी चाहिए और अगले ही पल भेड़िये ने छलांग लगाकर ऊंट की गर्दन में पैने दांत गड़ा दिए.

पंचतत्र की इस कहानी में भेड़िए का चरित्र महज एक रूपक है, बल्कि असली उद्देश्य ये है कि लोग अपने जीवन में समझदारी से काम लें, अवसर को पहचानें और ऊंट वाली गलती न करें.


इसी तरह जातक कथाओं में भी भेड़िया एक चालाक और मौका पड़ने पर क्रूरता दिखाने वाले रूपक के तौर पर सामने आता है. जातक कथाएं महात्मा बुद्ध के जीवन से जुड़ी शिक्षा प्रद कहानियों की शृंखला है. लोकमानस में जातक कथाओं का स्थान पंचतंत्र सरीखा ही है, लेकिन ये चालाकी और छल-छद्म से अलग नैतिकता ही सिखाती है, इसलिए भेड़िया यहां पूरी तरह से निगेटिव कैरेक्टर ही है.  

ज्योतिष के नजरिए से देखें तो भेड़िए के चरित्र-गुणों और प्रतीकों का प्रयोग ज्योतिषीय संदर्भों में भी हुआ है. ज्योतिष में पशुओं के प्रतीक अलग-अलग ग्रहों, राशियों, और भावों से जुड़े होते हैं. भेड़िया भी एक शक्तिशाली और रहस्यमय जीव होने के कारण इस शास्त्र का हिस्सा बनता रहा है.

राहु ग्रह और भेड़िया: ज्योतिष में राहु को छाया ग्रह कहा जाता है. इसे भ्रम, छल और माया से जोड़ा जाता है. भेड़िया का चालाक और जंगली स्वभाव राहु के गुणों से मेल खाता है. राहु की स्थितियों में छल, धोखा, और असाधारण घटनाएं हो सकती हैं, जो भेड़िये के प्राकृतिक गुणों से मेल खाती हैं. भेड़िया, एक शिकारी के रूप में, राहु के प्रभावों का प्रतीक बनता है.

चंद्रमा के साथ भेड़ियाः ऋग्वेद के दशम मंडल के पुरुष सूक्त में एक सूत्र है, ‘चंद्रमा मनसो जातः’. इस सूत्र के अनुसार चंद्रमा, पुराण पुरुष के मन से उत्पन्न हुआ है. इसलिए मन और भावनाओं पर इसका असर पड़ता है. भेड़िया को चंद्रमा से जुड़ा हुआ मानते हैं. मानते हैं कि जब पूर्णिमा की रात होती है और चांदनी में सबकुछ साफ नजर आता है तो भेड़िया अपने झुंड के साथ इसे ही दिन मनवाने में जुट जाता है. इसलिए ये झुंड में इकट्ठे होकर आवाज निकालते हैं.


पश्चिमी (विदेशी) संस्कृतियों की लोककथाओं में भी भेड़िये की चंद्रमा के प्रति आकर्षण या चंद्रमा के साथ उसकी गूंजने वाली आवाज़ (howling) की कल्पना से जुड़ी कई कहानियां हैं. भारतीय ज्योतिष में, चंद्रमा का मानसिक संतुलन-असंतुलन से गहरा संबंध है, और भेड़िये की गतिविधि और उसका जंगली स्वभाव, चंद्रमा की विभिन्न अवस्थाओं के प्रभाव का प्रतीक होता है.

मिर्गी का रोग, जिसे संस्कृत में अपस्मार के नाम से जानते हैं, वह भी मन के असंतुलन पर निर्भर करता है और ज्योतिष में इसका कारक चंद्र दोष बताया जाता है. इसमें रोगी के कांपने, दांत किटकिटाने, आवाज निकालने या कई बार मानसिक स्थिति में हिंसक हो जाने को भेड़िया से जोड़कर देखा जाता रहा है.

स्वप्न ज्योतिष में भेड़िया: सपने में भेड़िये का आना भी अशुभ माना जाता है. यह बताता है कि व्यक्ति की कुंडली में राहु, केतु या मंगल की चालों के कारण गलत प्रभाव पड़ रहे हैं. इसे भय और दुश्मनों की संख्या में इजाफा का संकेत भी माना जा सकता है. सपने में भेड़िया का दिखना जीवन में किसी बड़ी चुनौती या संघर्ष के आने का इशारा हो सकता है.

ऐसा नहीं है कि भेड़िया सिर्फ भारतीय मिथकों और लोककथाओं में शामिल रहा है, इसे ग्लोबली देखेंगे तो भेड़िया विश्व की कई प्राचीन सभ्यताओं में अपनी जगह बनाए दिखाई देगा. इसकी मान्यता बिल्ली-कुत्ते और तोते से कम नहीं है.


1. रोमन इतिहास में भेड़िया

प्राचीन रोम के सांस्कृतिक इतिहास पर नजर डालें तो , प्राचीन रोम में, भेड़िया का चिह्न विशेष रूप से लड़ाकों का चिह्न माना जाता था. रोम की स्थापना को लेकर जो पौराणिक कहानी कही जाती है, उसमें रोमुलस और रेमस नाम के दो जुड़वां भाइयों की कहानी भी शामिल है. इन दोनों को एक मादा भेड़िया (लूपा) ने पाला था. कहानी के मुताबिक, यही मादा भेड़िया रोम की नींव का प्रतीक बनी. इस प्रकार, भेड़िया रोमन सभ्यता का प्रमुख चिह्न रहा और रोम की शक्ति, संरक्षकता, और साम्राज्यवादी शक्ति का प्रतीक बना.

2. मंगोलों का भेड़िये से संबंध

सारी दुनिया में मंगोल साहसिक और क्रूर लड़ाइयों के लिए जाने जाते हैं, लेकिन इस जनजाति के प्राचीन मिथकों को देखेंगे तो यहां भेड़िया सबसे ऊंचे सिंहासन पर बैठा मिलेगा. मंगोलों की उत्पत्ति और सांस्कृतिक मान्यताओं से जुड़े कई मिथक और कहानियां हैं, जिनमें ये बताया जाता है कि उनकी उत्पत्ति एक नीले भेड़िये से हुई है. इस कहानी के अनुसार, मंगोलों के पूर्वज बोर्ते चिनो (नीला भेड़िया) और गोआ मरल (सफेद मृग) थे. नीला भेड़िया दैवीय है और मिथक के अनुसार, नीला भेड़िया और सफेद मृग की संतानों से ही मंगोल वंश की शुरुआत हुई थी. मंगोल भेड़िये को शक्ति, साहस और आत्मनिर्भरता के प्रतीक के तौर पर मानते हैं. मंगोल समाज और उनके खानाबदोश जीवनशैली के लिए भी यह गुण उनसे मेल खाता है.

3. नॉर्स (वाइकिंग) सभ्यता में भेड़िया

स्कैंडिनेवियाई के मूल निवासियों की सभ्यता वाइकिंग नाम से जानी जाती है और ये लोग नॉर्स कहलाते हैं. वाइकिंग्स स्कैंडिनेविया में जन्मे नॉर्स नाविक थे. वाइकिंग सभ्यता के मिथक में फेनरिर (Fenrir) नाम का एक विशाल भेड़िया है, जो देवताओं के खिलाफ युद्ध लड़ता है. वाइकिंग लड़ाकों ने भेड़िये के मास्क को प्रतीक के तौर पर अपनाया था. नॉर्स फेनरिर को शक्ति, विनाश और जंगली ताकत के रूप में देखते थे. वाइकिंग योद्धाओं के लिए भेड़िया साहसिक भावना और युद्ध कौशल का प्रतीक था.

4. चेचन संस्कृति में भेड़िया

दक्षिणी-पश्चिमी रूस में स्थित चेचेन्या की संस्कृति चेचन कहलाती है. चेचन संस्कृति में भेड़िया केवल एक जानवर नहीं है, बल्कि उनकी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान का जरूरी हिस्सा है. चेचन स्वतंत्रता संग्राम के दौरान और चेचन योद्धाओं के बीच “भेड़िये की राह” (The Way of the Wolf) का नारा भी प्रचलित रहा है. चेचन्या में धर्मनिरपेक्ष अलगाववादियों के हथियारों के कोट पर भेड़िया अंकित था. बाद में कट्टरपंथ ने इसे हटा दिया, लेकिन निर्वासित धर्मनिरपेक्ष सरकार अभी भी इसका उपयोग करती है.


(Photo Credit: Meta AI)

फिल्मों में वेयरवुल्फ (रूप बदलने वाला भेड़िया)

भेड़िया को लेकर मान्यताओं की जड़ें इतनी गहरी हैं कि प्राचीन मिथकों और सभ्यताओं की गाथाओं से लेकर फिल्मों के फिक्शन तक में ये एक रहस्यमयी जानवर है. फिल्मों में तो इसका रहस्य इतना गहराया है कि हॉलीवुड ने वेयरवुल्फ जैसे कैरेक्टर को खूब भुनाया है. वेयरवुल्फ फिक्शन बेस्ड कैरेक्टर है, इसे सामान्य तौर पर भेड़िया मानव समझा जा सकता है. वेयरवुल्फ वैसे तो इंसानी तौर पर नजर आते हैं, लेकिन वो कभी-कभी भेड़िया बन जाते हैं. भेड़िया बनना उनका पॉजिटिव साइड भी हो सकता है और डार्क साइड भी. 

फेमस राइटर जेके रॉलिंग की वर्ल्ड फेमस नॉवेल सिरीज हैरी पॉटर में भी वेयर वुल्फ का जिक्र मिलता है. इस नॉवेल पर बेस्ड फिल्म सिरीज हैरी पॉटर के तीसरे पार्ट (हैरी पॉटर एंड द प्रिजनर ऑफ अज़कबान) में वेयरवुल्फ का एक कैरेक्टर नजर आता है. इस कैरेक्टर का नाम प्रोफेसर ल्यूपिन है. ल्यूपिन जब छोटा था, तब उसे एक वेयरवुल्फ ने काट लिया था, लिहाजा वो भी एक वेयरवुल्फ बन जाता है. ल्यूपिन वैसे तो इंसानी तौर पर ही रहता है, लेकिन जब फुल मून नाइट (पूर्णिमा की रात) आती है तब वह अपने अंदर के भेड़िया को नहीं छिपा पाता है. 

फिल्म में वेयरवुल्फ का एक और कैरेक्टर है फेनर ग्रेबैक. फेनर ग्रेबैक क्रूर और हिंसक है और विलेन डार्क लॉर्ड वोल्डेमॉर्ट को मानने वाला है. ल्यूपिन को बचपन में काटने वाला वेयरवुल्फ फेनर ग्रेबैक की है.

हैरी पॉटर से पहले और इसके अलावा भी कई फिल्में हैं, जिनमें वेयरवुल्फ, लीड सब्जेक्ट रहा है और इसे लोगों ने काफी पसंद भी किया है. साल 1981 में बनी ‘An American Werewolf in London  निर्देशक- जॉन लैंडिस) की यह फिल्म क्लासिक वेयरवुल्फ फिल्मों में से एक है. इसका जॉनर हॉरर-कॉमेडी का है. इस फिल्म पर बेस्ड कई फिल्में और टीवी सिरीज बाद में भी बनी हैं. वहीं, साल 2010 में ‘The Wolfman’ आई. जो यूनिवर्सल स्टूडियो की 1941 की फिल्म ‘The Wolf Man’ का रीमेक है. फिल्म ऐसे व्यक्ति की कहानी है, जो एक पुराने अभिशाप के कारण भेड़िये में बदल जाता है. 

वेयरवुल्फ सीरीज में सबसे चर्चित फिल्म रही है, साल 1981 में आई ‘The Howling’ यह फिल्म वेयरवुल्फ पर बेस्ड हॉरर ज़ॉनर की मूवी है. जिसमें एक जर्नलिस्ट का सामना वेयरवुल्फ ग्रुप से होता है. इन फिल्मों से प्रेरित होकर इंडियन टीवी और सिनेमा में भी कई टीवी सीरीज और फिल्में बनी हैं, जिनकी कहानी वेयरवुल्फ पर बेस्ड रही है.


इस तरह भेड़िया पॉजिटिव हो या निगेटिव वह सभ्यताओं और संस्कृतियों का जरूरी हिस्सा रहा है. कई कहानियों में भेड़िये को जंगल का डर फैलाने वाला शिकारी जानवर माना जाता है, हालांकि, अक्सर अपने लालच या ओवरस्मार्टनेस के कारण उसकी हार भी होती है. वह चाहे हारे या जीते, इंसानी सभ्यता के लिए वह इन्फ्लुएंसर की तरह है. वह हर रूप में प्रभावित करता है. कुछ कहानियों में भेड़िया प्राकृतिक शक्तियों से जुड़ा होता है, और उसे जंगल के देवी-देवताओं से भी जोड़ा जाता है. कुछ कहानियों में, भेड़िया इंसानों के लिए खतरनाक होता है, तो कुछ में वह केवल अपने प्राकृतिक जंगली जीवन को जीता हुआ महज एक जानवर होता है.

बहराइच में हमलावर हो रहे भेड़िए अपने प्राकृतिक गुणों से अलग नहीं हैं, असलियत तो ये है कि हम ही उनके इलाकों में घुसते चले गए हैं और उन्हें बेघर कर दिया है. स्थितियां तो ऐसी बन चुकी हैं कि भेड़िये सिर्फ कहानियों में जिंदा बचेंगे, जंगलों की हकीकत में नहीं, और जो वे जंगलों में जिंदा न रहे तो कहानियां भी कहां तक उन्हें जिंदा रखने का भार ढो पाएंगी.

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AI Illustration: Vani Gupta



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