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छठ पूजा का शास्त्रीय स्वरूप क्या है, इस विधि से करें पूजा, छठी मैया होंगी प्रसन्न


Chhath Puja 2024: छठ का चार दिवसीय त्योहार उत्तर भारत में अत्यधिक लोकप्रिय माना जाता है, विशेषकर बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में. इस लेख के माध्यम से हम छठ के शास्त्रीय और लोकाचार दोनों रूपों पर नजर डालेंगे. सबसे पहले, शास्त्रीय स्वरूप की ओर बढ़ते हैं.

भविष्य पुराण के ब्रह्म पर्व अध्याय 39 के अनुसार, षष्ठी तिथि की विजय के लिए भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती है. हिन्दू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास का छठा दिन रवि षष्ठी के नाम से जाना जाता है, और इस दिन भगवान सूर्य (surya puja) की उपासना की जाती है.

कार्तिक षष्ठी को छठ के रूप में भगवान सूर्य नारायण की पूजा होती है. छठ शब्द वास्तव में षष्ठी का ही अपभ्रंश रूप है, जिसे उत्तर भारत में लोकाचार परंपरा में ‘छठी’ कहा जाने लगा. इस दिन भगवान कार्तिकेय (kartikey) को अर्घ्य देते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करें.

एहि सूर्य सहस्रांशो तेजोराशे जगत्पते ।

अनुकम्प्य मां देव गृहाणार्घ्यं दिवाकर ॥

(भविष्य पुराण ब्रह्मपर्व अध्याय 143.27)

इसके बाद इस तरह प्रार्थना करें

सप्तर्षिदारजस्कन्द स्वाहापतिसमुद्भव। रुद्रार्यमाग्निज विभोगङ्गागर्भ नमोऽस्तुते। प्रीयतां देवसेनानीः सम्पादयतु हृद्गतम् ॥ (भविष्य पुराण ब्राह्मपर्व 39.6)

चलिए अब लोकाचार मान्यताओं पर दृष्टि डालते हैं. एक प्रसिद्ध लोक गीत है छठ पर्व के लिए.

“कबहुँ ना छूटी छठि मइया,

हमनी से बरत तोहार

तहरे भरोसा हमनी के

छूटी नाही छठ के त्योहार”.

  • छठ पर्व लगभग चार दिन तक चलने वाले इस कठिन व्रत की शुरुआत नहाय-खाय से होती है, जब व्रती स्नान और पूजा के बाद चावल और दूधी चने की दाल से बनी सब्जी का सेवन करता है.
  • दूसरे दिन खरना मनाया जाता है, जिसमें व्रती केवल मीठे चावल खाता है.
  • तीसरे दिन व्रती का लगभग 36 घंटे का निर्जला व्रत आरंभ होता है. शाम के समय, व्रती और उसके परिवार के सदस्य नदी या तालाब पर जाकर कमर तक पानी में खड़े होकर अस्त होते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं और प्रसाद के रूप में फल और मिठाई चढ़ाते हैं.
  • अंतिम दिन, उदय होते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ इस व्रत का समापन होता है.

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नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.



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